Description
रामचरितमानस में तुलसीदास जी महाराज ने सत्संग के बारे में
लिखा है :-
बिनु सतसंग बिबेक न होई | राम कृपा बिनु सुलभ न सोई | |
भावार्थ यह है की सत्संग पिता सामान है व निरंतर सत्संग करने से भक्ति व ज्ञान उत्पन्न होते हैं | ज्ञान से विवेक आता है | विवेक से पैसे के सदुपयोग की बुद्धि आती है | सत्संग प्रभु से मिलन का साधन है | समय का सबसे अच्छा सदुपयोग यही है | इसके लिए किसी पंडाल में जाने की आवश्यकता नहीं है |
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