श्रीमद्भगवद्गीता महात्म्यसाहित Shreemad Bhagwad Gita 1555

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श्रीमद्भगवद्गीता महात्म्यसाहित Shreemad Bhagwad Gita 1555

यह श्रीसम्प्रदाय प्रवर्तक जगद्गुरू श्री रामानुजाचार्य द्वारा की गई विशिष्टाद्वैत सिद्धान्त की पुष्टि में गीता की अद्भुत व्याख्या है, जिस का अनुकरण भक्ति-पक्ष के लगभग सभी आचार्यों द्वारा किया गया है। आचार्यश्री के इस भाष्य में प्रचलित अद्वैतवाद का श्रुति-स्मृतियों के प्रमाण सहित सुन्दर युक्तियों द्वारा खण्डन, भगवद्-आराधना पूर्वक कर्म की आवश्यकता पर बल, आत्मबोध-हेतु सतत प्रयास इत्यादि विषयों पर विशद विवेचन है।

गीताभाष्य गीता पर विभिन्न विद्वानों द्वारा लिखे भाष्यों को कहा जाता है, भगवद्गीता पर विभिन्न विद्वानों द्वारा लिखे गये प्रमुख भाष्य निम्नानुसार हैं-

गीताभाष्य – आदि शंकराचार्य
ज्ञानेश्वरी – ज्ञानेश्वर महाराज ने संस्कृत से गीता का मराठी में अनुवाद किया।
श्रीमद् भगवद् गीता यथारूप-ए सी भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
गीतारहस्य – बालगंगाधर तिलक
अनासक्ति योग – महात्मा गांधी
गीताई – विनोबा भावे
गीता तत्व विवेचनी – जयदयाल गोयन्दका
तत्त्व संजीवनी– स्वामी रामसुखदास

1017 ईसवी सन् में रामानुज का जन्म दक्षिण भारत के तमिलनाडु प्रान्त में हुआ था। बचपन में उन्होंने कांची जाकर अपने गुरू यादव प्रकाश से वेदों की शिक्षा ली। रामानुजाचार्य आलवार सन्त यमुनाचार्य के प्रधान शिष्य थे। गुरु की इच्छानुसार रामानुज से तीन विशेष काम करने का संकल्प कराया गया था – ब्रह्मसूत्र, विष्णु सहस्रनाम और दिव्य प्रबन्धम् की टीका लिखना। उन्होंने गृहस्थ आश्रम त्याग कर श्रीरंगम् के यतिराज नामक संन्यासी से संन्यास की दीक्षा ली।

मैसूर के श्रीरंगम् से चलकर रामानुज शालिग्राम नामक स्थान पर रहने लगे। रामानुज ने उस क्षेत्र में बारह वर्ष तक वैष्णव धर्म का प्रचार किया। उसके बाद तो उन्होंने वैष्णव धर्म के प्रचार के लिये पूरे भारतवर्ष का ही भ्रमण किया। 1137 ईसवी सन् में 120 वर्ष की आयु पूर्ण कर वे व्रह्मालीन हुए।

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