Navadha-Bhakti/ नवधा भक्ति

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श्रवण (परीक्षित), कीर्तन (शुकदेव), स्मरण (प्रह्लाद), पादसेवन (लक्ष्मी), अर्चन (पृथुराजा), वंदन (अक्रूर), दास्य (हनुमान), सख्य (अर्जुन) और आत्मनिवेदन (बलि राजा) – इन्हें नवधा भक्ति कहते हैं। श्रवण: ईश्वर की लीला, कथा, महत्व, शक्ति, स्रोत इत्यादि को परम श्रद्धा सहित अतृप्त मन से निरंतर सुनना।

नवधा भक्ति संस्कृत में नौ विभिन्न प्रकार की भक्ति को दर्शाने वाला एक आध्यात्मिक अवधारणा है। इस अवधारणा के अनुसार, भक्ति के नौ प्रकार हैं, जो भक्त को भगवान के प्रति अपनी प्रेम और समर्पण की विभिन्न रूपों को अनुभव करने में मदद करते हैं। इन नौ प्रकार का विवरण निम्नलिखित है:

  1. श्रवण (Shravana): भक्ति का प्रथम पथ है श्रवण, जो धार्मिक कथाओं, सत्संगों या साधु-संतों के उपदेशों की सुनना है।
  2. कीर्तन (Kirtana): भगवान के गुणों की महिमा गाने या उनकी उपासना करने का प्रकार है।
  3. स्मरण (Smaraṇa): भगवान की ध्यान, स्मरण या उनके नाम का स्मरण करना।
  4. पादसेवन (Padasevana): साधु-संतों के पादों की सेवा करना या उनके साथ सेवा करना।
  5. अर्चन (Archan): मूर्तियों या विग्रहों की पूजा और उनके सामने धूप, दीप, नैवेद्य, अभिषेक आदि के रूप में उन्हें आराधना करना।
  6. वन्दन (Vandana): भगवान को भक्ति और भक्ति के साथ वंदना करना।
  7. दास्य (Dasya): भगवान के भक्त का भगवान के सेवक के रूप में आत्मसमर्पण।
  8. साख्य (Sakhya): भगवान के साथ मित्रता का अनुभव।
  9. आत्मनिवेदन (Atmanivedana): भगवान को अपने आप का समर्पण करना।

ये नौ प्रकार किसी भक्त को भगवान के प्रति उनकी प्रेम और समर्पण की विभिन्न रूपों को अनुभव करने में मदद करते हैं और उसे आध्यात्मिक उत्थान में मार्गदर्शन करते हैं।

Description

श्रवण (परीक्षित), कीर्तन (शुकदेव), स्मरण (प्रह्लाद), पादसेवन (लक्ष्मी), अर्चन (पृथुराजा), वंदन (अक्रूर), दास्य (हनुमान), सख्य (अर्जुन) और आत्मनिवेदन (बलि राजा) – इन्हें नवधा भक्ति कहते हैं। श्रवण: ईश्वर की लीला, कथा, महत्व, शक्ति, स्रोत इत्यादि को परम श्रद्धा सहित अतृप्त मन से निरंतर सुनना।

नवधा भक्ति संस्कृत में नौ विभिन्न प्रकार की भक्ति को दर्शाने वाला एक आध्यात्मिक अवधारणा है। इस अवधारणा के अनुसार, भक्ति के नौ प्रकार हैं, जो भक्त को भगवान के प्रति अपनी प्रेम और समर्पण की विभिन्न रूपों को अनुभव करने में मदद करते हैं। इन नौ प्रकार का विवरण निम्नलिखित है:

  1. श्रवण (Shravana): भक्ति का प्रथम पथ है श्रवण, जो धार्मिक कथाओं, सत्संगों या साधु-संतों के उपदेशों की सुनना है।
  2. कीर्तन (Kirtana): भगवान के गुणों की महिमा गाने या उनकी उपासना करने का प्रकार है।
  3. स्मरण (Smaraṇa): भगवान की ध्यान, स्मरण या उनके नाम का स्मरण करना।
  4. पादसेवन (Padasevana): साधु-संतों के पादों की सेवा करना या उनके साथ सेवा करना।
  5. अर्चन (Archan): मूर्तियों या विग्रहों की पूजा और उनके सामने धूप, दीप, नैवेद्य, अभिषेक आदि के रूप में उन्हें आराधना करना।
  6. वन्दन (Vandana): भगवान को भक्ति और भक्ति के साथ वंदना करना।
  7. दास्य (Dasya): भगवान के भक्त का भगवान के सेवक के रूप में आत्मसमर्पण।
  8. साख्य (Sakhya): भगवान के साथ मित्रता का अनुभव।
  9. आत्मनिवेदन (Atmanivedana): भगवान को अपने आप का समर्पण करना।

ये नौ प्रकार किसी भक्त को भगवान के प्रति उनकी प्रेम और समर्पण की विभिन्न रूपों को अनुभव करने में मदद करते हैं और उसे आध्यात्मिक उत्थान में मार्गदर्शन करते हैं।

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